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जंगल की कहानी : चतुर लोमड़ी और भूखा भालू :- (Jungle Story: The Clever Fox and the Hungry Bear) एक बार की बात है, जंगल के एक हिस्से में भूखा भालू टहल रहा था। उसका पेट भूख से मरोड़ खा रहा था और उसे कुछ खाने की तलाश थी। तभी उसने दूर से एक लोमड़ी को देखा, जो बड़े मजे से मांस खा रही थी। भालू की भूख और बढ़ गई, और उसने सोचा, “अरे वाह! अगर मैं इस लोमड़ी से थोड़ा मांस मांग लूं, तो मेरा पेट भी भर जाएगा।”
भालू लोमड़ी के पास पहुंचा और बोला, “अरे लोमड़ी बहन, मैं बहुत भूखा हूँ। क्या मुझे थोड़ा मांस दे सकती हो?”
लोमड़ी ने भूखे भालू को देखा और सोचा कि यह कितना आलसी है। बिना मेहनत किए ही खाने की तलाश में भटक रहा है। लेकिन लोमड़ी चालाक थी, उसने भालू को सिखाने का एक मजेदार तरीका सोचा।
लोमड़ी ने मुस्कुराते हुए कहा, “भालू भाई, मैं तो तुम्हें मांस देने के लिए तैयार हूँ, लेकिन उसके लिए तुम्हें मेरी थोड़ी मदद करनी होगी।”
भालू ने आश्चर्य से पूछा, “कैसी मदद, लोमड़ी बहन?”
लोमड़ी ने चतुराई से कहा, “देखो, पास के खेत में बहुत सारे खरगोश रहते हैं। अगर तुम मेरे साथ चलो और हम मिलकर मेहनत करें, तो बहुत सारे खरगोश पकड़ सकते हैं। फिर हम दोनों मिलकर उन्हें खाएंगे।”
भालू को लोमड़ी का प्रस्ताव अच्छा लगा और वह लोमड़ी के साथ चल पड़ा। दोनों खेत की तरफ बढ़े, लेकिन लोमड़ी के मन में कुछ और ही चल रहा था। उसने खेत के पास जाकर कहा, “भालू भाई, मैं इस तरफ से जाकर खरगोशों को भगाऊँगी, तुम दूसरी तरफ जाओ और जैसे ही खरगोश बाहर निकलें, उन्हें पकड़ लेना।”
भालू ने जोश में आकर कहा, “ठीक है लोमड़ी बहन, आज तो मजा ही आ जाएगा!”
लोमड़ी अपने हिस्से की ओर गई और खरगोशों को डराने का नाटक किया। खरगोश इधर-उधर भागने लगे, लेकिन भालू को एक भी खरगोश पकड़ने में सफलता नहीं मिली। काफी कोशिशों के बाद भालू थक कर बैठ गया और बोला, “लोमड़ी बहन, यह बहुत कठिन काम है! मुझे तो कुछ भी नहीं मिला।”
लोमड़ी ने हँसते हुए कहा, “भालू भाई, यही तो मेहनत का खेल है। बिना मेहनत के कुछ भी हासिल नहीं होता। अगर मुझसे मांस चाहिए था, तो तुम्हें मेहनत करनी ही पड़ेगी।”
भालू ने निराश होकर कहा, “लेकिन यह काम मेरे बस का नहीं है। मुझे तो लगा था कि बिना मेहनत के आसानी से खाने को मिल जाएगा।”
लोमड़ी ने गंभीरता से कहा, “देखो, भालू भाई, जंगल में सभी जानवर मेहनत करके ही अपना पेट भरते हैं। अगर तुम भी मेहनत करने की आदत डाल लो, तो तुम्हें कभी किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मेहनत से जो खुशी मिलती है, वह किसी भी चोरी या दूसरों के भरोसे रहने से नहीं मिल सकती।”
भालू ने समझते हुए सिर हिलाया और कहा, “लोमड़ी बहन, तुम बिल्कुल सही कह रही हो। आज से मैं भी मेहनत करके ही अपना पेट भरूंगा। अब मैं आलस छोड़कर मेहनत करना सीखूंगा।”
इस प्रकार, भालू ने लोमड़ी की सीख को अपना लिया और मेहनत करने का संकल्प लिया। उसने खुद से वादा किया कि अब वह कभी आलस नहीं करेगा और हमेशा मेहनत से ही अपना भोजन कमाएगा।
सीख: मेहनत से ही सच्चा सुख और संतोष मिलता है। बिना मेहनत के दूसरों पर निर्भर रहना हमें कभी सच्ची खुशी नहीं दे सकता। मेहनत की रोटी ही असली स्वाद देती है।